Sunday, 30 December 2012
हार गई जिंदगी से जुडे सवाल
दवा और दुआएं भी नाकाम रहीं. जिंदगी मौत से हार गई. 16 दिसंबर की रात राजधानी दिल्ली में छह वहशी दरिंदों के बर्बर, सामूहिक बलात्कार की शिकार पैरा मेडिकल छात्रा ने आखिरकार शनिवार की अलसुबह सिंगापुर के अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं और दुनिया भर के विशेषज्ञ डाक्टरों से सज्ज माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में दम तोड़ दिया. जिस तरह से दरिंदों ने चलती बस में उस बहादुर युवती और उसके मित्र के प्रतिरोध के बीच उसके साथ बर्बर अत्याचार किया था, उसके जीवित बच पाने की उम्मीद पहले से ही बहुत कम थी. यह तो उसकी जिजीविषा ही थी जिसने उसे इतने दिनों तक मौत के पंजों से महफूज रखा. लेकिन इस मौत ने कई सवालों के साथ जैसे पूरे देश को ही झकझोर दिया है. दिल्ली और देश के अन्य शहरों में भी छात्र-युवा, आम नागरिक सड़कों पर आकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए उसके लिए इन्साफ मांग रहे हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को कहना पड़ा है कि यह मौत बेकार नहीं जाने दी जाएगी. यह बात और है कि नई दिल्ली में इंडिया गेट लस लेकर राजपथ, राष्ट्रपति भवन,प्रधानमंत्री निवास तमाम, मंत्रियों, नेताओं के बंगलों को इस तरह सील कर दिया गया, आस पास के मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए जैसे पूरे इलाके में इमरजेंसी लगी हो.और शासक अपने ही लोगों से दर गए हों.
यह इस साल का अंतिम ‘जीरो आवर’ होगा. 2012 बीतने को है. 2013 आने की दस्तक दे रहा है. मन व्यथित और गमजदा है. और कुछ आक्रोशित भी. बीता साल जाते-जाते राजधानी दिल्ली को और समूचे देश को कलंकित करने वाला एक ऐसा जख्म दे गया जिसके घाव आसानी से नहीं भरेंगे. हालाँकि इस जख्म और इसके विरुद्ध दिल्ली और देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह का स्वतःस्फूर्त छात्र-युवा, जनाक्रोश निकल कर सामने राजपथ से लेकर इंडिया गेट, जंतर मंतर और अन्य शहरों में सड़कों पर आया और कई दिनों तक लगातार बना रहा, उससे उम्मीद बंधती है. यह वाकई अच्छा संकेत है क्योंकि आजकल बड़े से बड़े हादसों को भी भूलने में हमें समय नहीं लगता. इस जनाक्रोश ने सामूहिक बलात्कार की इस घटना तथा इससे जुड़े मामलों में केंद्र और राज्य सरकार को भी तत्काल कार्रवाई के लिए बाध्य किया. बर्बर बलात्कारी धर लिए गए. पूरी सत्ता व्यवस्था घबराई सी है. खबरिया चैनलों से लेकर हमारे प्रिंट मीडिया में भी टीआरपी और प्रसार संख्या बढ़ाने की गरज से बलात्कार के विरुद्ध ‘मिशन’ चलाने की होड़ सी लग गई है, जैसे दिल्ली और देश में बलात्कार की पहली घटना हुई हो. जब देश और दिल्ली के लोग सामूहिक बलात्कार की इस घटना को लेकर बेहद उत्तेजित और आंदोलित थे, उस समय भी देश और दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में बलात्कार और दरिंदगी की अनेक घटनाएं घटती रहीं. दिल्ली में ही एक प्ले स्कूल के प्रबंधक ने तीन साल की एक अबोध बच्ची के साथ बलात्कार किया. क्या हममें से कोई उसकी और उसके परिवारवालों की सुध लेने गया. हमारी संवेदनाएं तभी जगती हैं जब कोई घटना बड़ा रूप ले लेती है और मीडिया उसे सुर्खियां बनाने में जुट जाता है.
इस जनाक्रोश और उससे निबटने के पुलिसिया तरीके ने भी कई तरह के सवाल खड़े किए हैं. इसने अपराधियों-दंगाइयों और शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शनकारियों के बीच फर्क नहीं करने वाली पुलिस व्यवस्था को एक बार फिर उजागर किया है. वर्ना सामूहिक बलात्कार की शिकार युवती को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उमड़े जनाक्रोश को देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और दिल्ली की मुख्यमंत्री द्वारा जायज करार दिए जाने के बावजूद कंपकंपाती ठंड में राजपथ और इंडिया गेट पर जमा छात्र-युवा, स्त्री-पुरुष प्रदर्शनकारियों पर ठंडे पानी की मोटी बौछारें, आंसू गैस के गोले और लाठियां नहीं बरसाई जातीं. यही नहीं, पुलिस अब प्रदर्शनकारियों के पीछे दौड़ते समय गिरकर मरे दिल्ली पुलिस के एक जवान की ‘हत्या’ के मामले में कुछ प्रदर्शनकारियों को लपेटने में लग गई है. प्रत्यक्षदर्शियों से लेकर इलाज करने वाले डाक्टरों का भी यही मानना रहा है कि जवान के शरीर पर बाहरी-अंदरूनी चोट के निशान नहीं थे, जिनके चलते उनकी मौत हुई हो, लेकिन प्रदर्शनकारियों को हिंसक और हमलावर के रूप में पेश करने पर आमादा दिल्ली पुलिस उसे हत्या के प्रयास का मामला बनाने में लगी है. कुछ ऐसे लोगों को भी हिरासत में लिया गया है जिनका दावा है कि वे उस पर इंडिया गेट पर नहीं बल्कि मेट्रो रेल में सवार थे. अदालत के आदेश पर अब मेट्रो के सीसीटीवी में कैद तस्वीरों की फुटेज खंगाली जा रही है.
इस प्रकरण ने दिल्ली में शासन और पुलिस व्यवस्था के खोखलेपन को भी उजागर किया है. दिल्ली की कालोनियां और सड़कें -बसें, गाड़ियां बच्चियों, युवतियों और कामकाजी महिलाओं के लिए असुरक्षित क्यों होती जा रही हैं? इस पर आपस में मिल बैठकर विचार करने और समाधान ढूंढने के बजाए मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और घटना के सात-आठ दिन बाद विदेश से लौटे उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना अपना पिंड बचाने और एक-दूसरे को नीचा दिखाने में ही लग गए. मुख्यमंत्री दिल्ली में कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार पुलिस को कसूरवार ठहराती रहीं जबकि उपराज्यपाल ट्रैफिक पुलिस को, जिसने घटना के दिन चलती बस को अपने चेक पोस्टों पर रोकने की जहमत नहीं उठाई. पता चला है कि जिस चार्टर्ड बस में युवती के साथ पाशविक कुकर्म हुआ उसका इससे पहले सात -आठ बार चलन हो चुका था और उसके पास महीनों से दिल्ली की सड़कों पर दौड़ने का वैध परमिट भी नहीं था. फिर वह चलन में क्यों थी और दिल्ली के दो प्रतीष्ठित स्कूलों के बच्चों को लाने- पहुंचाने में कैसे लगी थी. इस घटना की गहराई में जाकर जांच करने पर न सिर्फ दिल्ली पुलिस के सभी स्वरूपों में लगा भ्रष्टाचार का घुन सामने आता है, पुलिस अपराधी- असामारही जिक तत्वों और हमारे नेताओं के बीच एक अजीब तरह की दुरभिसंधि का पता भी चलता है. बिना वैध परमिट के दिल्ली में चलनेवाली वह अकेली बस नहीं थी और भी तमाम बसें बिना विश परमिट के दिल्ली के विभिन्न मार्गों पर धड़ल्ले से चल रही हैं.चेकपोस्टों पर पुलिस सिर्फ़ ट्रैफिक जाम करती और स्कूटर, कइके सवारों को रोक कर उनसे पैसे वसूलती है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस ताजा जनाक्रोश के दबाव में नए साल में यह दुरभिसंधि टूटेगी. अपराधियों को उनके अपराध की प्रवृत्ति के हिसाब से उनके किए की सजा के प्रावधान और उस पर अमल की गारंटी मिलेगी. और न सिर्फ सामूहिक बलात्कार की शिकार इस युवती को बल्कि आए दिन शोषण, उत्पीड़न और बलात्कार का शिकार बनाई जा रही उन बच्चियों, युवतियों और महिलाओं को भी न्याय मिलेगा जो दिल्ली के संभ्रांत इलाकों और मीडिया की सुर्ख़ियों के दायरे से बहुत दूर गली-मोहल्लों, गांवों, आदिवासी इलाकों में रहती हैं.
बीता साल देश में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल से सराबोर रहा. कांग्रेस राहुल गांधी के रूप में युवा नेतृत्व पेश करने की कवायद में जुटी रही लेकिन साल की शुरुआत में यूपी विधानसभा के चुनाव में बाजी समाजवादी पार्टी के युवा नेता अखिलेश यादव मार ले गए. सरकार के संकटमोचन कहे जाते रहे प्रणब बाबू माननीय मंत्री से महामहिम राष्ट्रपति महोदय बन गए. यूपी, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में तख्तापलट हो गया जबकि गुजरात में जीत की तिकड़ी बनाने में सफल रहे नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति की ओर बढ़ती पदचाप साफ़ सुनाई देने लगी है. इसे लेकर भाजपा और उसे संचालित करने वाले आरएसएस में मंथन जारी है. ममता बनर्जी की तृणमूल कांगे्रस ने मल्टी ब्रांड खुदरा बाजार में सीधे विदेशी निवेश की अनुमति से कुपित होकर सरकार से समर्थन वापस ले लिया. आपसी अंतर्विरोधों में उलझे मुलायम सिंह और मायावती यूपीए सरकार की लानत-मलामत करते हुए भी अपने-अपने ढंग उसके संकटमोचन बने रहे. 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की तर्ज पर भाजपा ने कोयला खदानों के आवंटन में कथित घोटाले पर संसद को जाम किया. लेकिन दूसरे कार्यकाल की तैयारी में जुटे इसके अपने ही अध्यक्ष नितिन गडकरी भ्रष्टाचार के आरोपों में इस कदर घिरे कि पार्टी ने उन्हें हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव अभियान से दूर रखना ही श्रेयस्कर माना.हालाँकि संघ अब भी उन्हें दुसरे कार्यकाल के लिए भाजपा का अध्यक्ष बनाने पर अडिग लगता है.
मुंबई पर आतंकी हमलों के गुनहगार पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब को फांसी पर लटका दिया गया. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और कालेधन की वापसी के लिए बाबा राम देव और टीम अन्ना के आंदोलन-अनशन कार्यक्रमों ने भी खूब सुर्खियां बंटोरी, लेकिन साल बीतते-बीतते राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के मद्देनजर टीम अन्ना बिखर गई. अरविंद केजरीवाल ने अपने समर्थकों को साथ लेकर ‘आम आदमी पार्टी’ बना ली. लेकिन लोकपाल संसद के मुहाने पर ही खड़ा रहा. अगले साल में उसके भी अस्तित्व में आने की उम्मीद की जानी चाहिए. अगले साल दस राज्य विधानसभाओं के चुनाव कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा के लिए भी बेहद चुनौतीपूर्ण साबित होंगे. लोकसभा के मध्यावधि चुनाव की अटकलें भी हवा में यथावत बनी हुई हैं. संसद पर आतंकी हमले के गुनहगार अफजल गुरु की फांसी का सवाल भी है. और सबसे बड़ी बात सामूहिक बलात्कार की शिकार बहादुर बहन-बेटी और उसके बहाने शोषण,उत्पीड़न और बलात्कार की शिकार बनाई जा रही तमाम बहन-बेटियों को मिलने वाले इंसाफ और औरत के बारे में हमारी मानसिकता में बदलाव की भी है. इन सब बातों पर अगले साल ‘जीरो आवर’ में चर्चा होगी.
नया साल सुखद और मंगलमय होने की शुभकामनाएं.
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