Saturday, 2 March 2013

फ़िराक साहब की याद में

पने ज़माने के ख्यातनाम शायर फिराक गोरखपुरी के साथ यह इंटरव्यू हमने 1981 की सर्दियों में  इलाहाबाद में बैंक रोड पर स्थित उनके निवास पर लिया था. उस समय वह बीमार, बिस्तर पर पड़े रहते थे. इंटरव्यू काफी लम्बा था जिसे मैंने उस समय की तमाम बड़ी पत्र पत्रिकाओं के पास प्रकाशनार्थ भेजा था लेकिन किसी ने उसे प्रकाशित नहीं किया था. शायद इसलिए भी कि उन्होंने हिंदी और हिंदी के कुछ बड़े लेखकों के बारे में कुछ विवादित बातें भी कही थी. फिराक साहब के निधन के बाद, मुंबई (तब बम्बई ) प्रवास के दौरान अंग्रेजी साप्ताहिक सन्डे आब्जर्वर में कार्यरत हमारी मित्र ज्योति पुनवानी के जरिये पत्रिका के तत्कालीन संपादक विनोद मेहता से बात हुई थी. उन्होंने फिराक साहब का पूरा इंटरव्यू सुनने के बाद कहा था क्या इसे अंग्रेजी में ट्रांसलेट कर सकते हो? मैंने प्रकाशन के लिए तो हाँ कर दी थी लेकिन उसे अनुवाद करने से मना कर दिया था. तब हमारी मित्र ज्योति ने ही उसे अनूदित किया था. वह इंटरव्यू 4 अप्रैल 1982  के सन्डे आब्जर्वर में इंटरव्यू ऑफ़ द वीक के रूप में छपा था. बाद में जब दिल्ली में चन्दन मित्रा सन्डे आब्जर्वर के संपादक बने तो उन्होंने सन्डे आब्जर्वर के दस साल पूरा होने पर एक विशेषांक निकाला था. उसमें फिराक साहब के उस  इंटरव्यू का सम्पादित अंश भी प्रकाशित किया गया था. 3 मार्च को फिराक साहब की पुण्यतिथि के अवसर पर इसे अपने मित्रों-परिचितों से शेयर करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा.